आखिर शरद और अजित पवार में विवाद क्यों?

  •       वर्ष 2004 से शुरू हुआ था चाचा और भतीजे के बीच मन-मुटाव


 

मुंबई. शरद पवार और अजित पवार में विवाद 2004 से शुरु हुआ। जब विधानसभा चुनाव में राष्ट्रवादी को 71 और कांग्रेस को 69 सीटें मिली तब शरद पवार ने मुख्यमंत्री पद लेने के बजाय कांग्रेस को दिया। हालांकि अजित चाहते थे कि मुख्यमंत्री पद उन्हें मिले, लेकिन शरद ने उसके बदले दो कैबिनेट और एक राज्यमंत्री पद हासिल कर लिया।


2009 में विधानसभा चुनाव के दौरान अजित पवार अपने खेमे के लोगों को टिकट देना चाहते थे, लेकिन शरद पवार ने उनकी नहीं सुनी। 2019 के लोकसभा चुनाव में अजित पवार अपने बेटे पार्थ पवार को चुनाव मैदान में उतारना चाहते थे, लेकिन शरद पवार ने अजित की मांग को ठुकराया।


अजित की जिद को देखते हुए शरद ने पार्थ को टिकट दिलवाया लेकिन उन्होंने बेटी सुप्रिया की जीत के लिए जी-जान लगा दी। वहीं पार्थ के लिए ज्यादा काम नहीं किया और पार्थ हार गए। विधानसभा चुनाव में भी अजित पवार अपने खेमे के कुछ लोगों को टिकट दिलवाना चाहते थे, लेकिन शरद पवार ने उनकी नहीं सुनी। इतना ही नहीं अपने दूसरे पोते रोहित पवार को विधानसभा का टिकट दिया और रोहित को जिताया। 



विस चुनाव के पहले शरद का नाम जब ईडी की एफआईआर में आया तब उन्होंने ईडी दफ्तर जाने का निर्णय लिया जिससे काफी गहमागहमी हो गई। शरद से फोकस हटाने के लिए अजित पवार ने विधायक पद से इस्तीफा दिया जिससे दो दिनों तक चर्चा में रहे। 



इन्ही अजित पवार को ईडी का नोटिस आया तब उनके समर्थन में शरद पवार या राष्ट्रवादी का कोई भी नेता आगे नहीं आया था। राष्ट्रवादी का भगवा झंडा भी होगा ऐसा वक्तव्य अजित पवार ने किया तो शरद पवार ने कहा कि वह उनका निजी वक्तव्य है इससे पार्टी का कोई लेना-देना नहीं।


अजित पवार ने ईवीएम पर आरोप लगाने के बजाय काम शुरु करे ऐसा वक्तव्य किया तो शरद पवार ईवीएम में गड़बड़ी होने पर कायम रहे। अब जब कांग्रेस-राष्ट्रवादी और शिवसेना सत्ता स्थापन करने की कवायद कर रहे थे तब उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री के रूप में शरद पवार ने आगे किया जो अजित पवार को पसंद नहीं आया और उन्होंने भाजपा को समर्थन दिया।